अजमेर – जीरे में झुलसा रोग का करें उपचार
जीरे में झुलसा रोग से बचाव के लिए समय पर उपाय अपनाएं जाने के लिए कृषकों को सलाह प्रदान की गई है।
कृषि प्रौद्योगिकी केन्द्र तबीजी के कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) जितेन्द्र शर्मा ने बताया कि विभिन्न बीजीय मसाला फसलों में जीरा एक महत्वपूर्ण फसल हैं। जीरे का उपयोग सभी सब्जियों, सूप, आचार, सॉस आदि को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता हैं। जीरे की फसल में कई हानिकारक रोगों का प्रकोप होता हैं। इनमें से झुलसा रोग का समय पर नियंत्रण नहीं करने पर उपज में काफी हानि होती हैं। जिले के सभी कृषकों को जीरे की फसल को रोगों से बचाने के लिए विभागीय सिफारिश के अनुसार फफूंदनाशियों का छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव करते समय हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क तथा पूरे वस्त्र पहनने की सावधानी भी रखी जानी आवश्यक है।
उन्होंने बताया कि झुलसा रोग एक कवक जनित रोग है। इसे सामान्य भाषा में काल्या रोग के नाम से भी जाना जाता हैं। फसल में फूल आने वाली अवस्था के समय आकाश में बादल छाए रहने से इस रोग का प्रकोप होने की संभावना बढ़ जाती है। रोग के प्रकोप से पौधों की पत्तियों के सिरे झुके हुए नजर आते हैं। पौधों की पत्तियों व तनों पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। यह रोग पत्तियों से वृन्त, तने एवं बीजों पर फैल जाता हैं। इस रोग का प्रसार इतना तीव्र होता हैं कि अगर समय पर नियंत्रण ना किया जाये तो फसल को बचाना मुश्किल हो जाता हैं।
उन्होंने बताया कि इस रोग से बचाव के लिए तीनो में से एक उपाय अपनाना पर्याप्त रहता है। जीरे की बुवाई के 30 से 35 दिन बाद दो ग्राम थायोफेनेट मिथाइल या जाइरम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 40 से 45 दिन बाद छिड़काव को दोहराया जाना चाहिए। इसके अलावा रोग के लक्षण दिखाई देने पर डाईफेनोकोनाजॉल का 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। इसका दूसरा व तीसरा छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर पुनः दोहराया जा सकता है। इसके अतिरिक्त बुवाई के 35 दिन बाद एक मिलीलीटर प्रोपीकोनाजोल का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर तीन छिड़काव करके भी जीरे की फसल को बचाया जा सकता है।